अफ़्रीकी बच्चे / डेसमण्ड एमपीलो टुटू / नीता पोरवाल
वे रात में ख़ाली पेट लिए सोते हैं
अपने दुखते हाथों, आँखों, पैरों को आराम देने के लिए धूल में लोटते हैं
मार्ले और तोष ने उनके आज़ादी के दर्द को अपने गीतों में संजोया
हर ओर
नोची गई रौशनी
चिंघाड़ते हुए हाथी
और रात के रास्ते ग़ायब होते कानून
आज एक गुहार
यूनिसेफ़ से उनके अस्तित्व के सरंक्षण के लिए
क्रान्ति के लिए उतरे आम आदमी के रक्त से रंजित सड़कें
रंग-भेद का समर्थन करते खिन्न नेता
क्षणिक रोमांच लिए पहाड़ियों की ओर दौड़ते हैं
शक्ति का ऐसा सन्तुलन ?
क़ब्र से दूर मण्डेला की आवाज़ आज भी सुनाई देती है
डेसमण्ड टूटू आज़ादी के हक़ के लिए अपनी आवाज़ बुलन्दी से उठाते हैं
प्रेम की आस में तड़पती दुनिया के लिए
आकाशदीप की ज्योति-सा सिर्फ़ बोनो ही अब कुछ कर सकता है,
अफ़्रीका के सभी बच्चों के समान अधिकार और न्याय के लिए
इतनी मुश्किल और भीषण जंग लड़ी कैसे तुमने?
जबकि सच्चा प्रेम यहाँ कब का ग़ायब था
आज आज़ाद होना ही समय की सबसे बड़ी माँग है
वे हाशिए पर जीवन गुज़ारते हैं
यह बात उनके दिमागों में घर कर चुकी है
रात में बिस्तर में नितान्त अकेले बैठे
आसमान में इन्द्रधनुष का पीछा करते
कुछ समाधान निकालने में जुटे रहते हैं उनके दिमाग
किये जा रहे उनके प्रयास साफ़ नज़र आते है
वहाँ युद्ध लगभग ख़त्म हो चुका है
विश्वास करना बहुत मुश्किल है लेकिन वे प्रेम करते हैं एक दूसरे से
बेको उत्सव मनाओ और आज़ादी का बिगुल बजाओ
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीता पोरवाल