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बूंण मिन् बणै / तोताराम ढौंडियाल 'जिग्यांसु'
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हौर्यूं कि मिं नि जण्दो
पर् यो बूंण मिन्नीं बणै!
भले हि एक 'मेलि' बि नि बूति!
पौल बि नि रोपि!
पाणि बि चारो!
क्यारि बि नि गोडि!
बूंण-जंगल त् सृष्टि काला कै छीं!
डाला; मेरि उमर से बि बड़ै छीं!!
अपणि खांणि-मंगणि से धितेल्या!
तुमरो बि अपंण खीसुन्द् बटि कुछ्छु नि जांणू!
संचार माध्यमूंम् लूंण-मर्च चटबट्टो कैद्या!!
तुम्वीं छौ म्यार् ब्वै-बाब!
ठकुरो या! तुमरि खुट्यूँ मुन्ड धर्यूं!!
अन्तर्राष्ट्रिय पुरस्कार दिवैद्या!