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बीत रहल हे रात / सच्चिदानंद प्रेमी
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बीत रहल हे रात।
धीरज के कान्हा पर चढ़के
आव चमकित प्रात
धीरे धीरे कनकन होगेल पोरा आउर नेहाली,
घुच्च अंधरिया अपनो हँथवा-
सुझे न हायराम हाली।
कहिना उखड़त पाँव सिसिर के-
खुलत कमल के पात।
बीत रहलहे रात।
मनमा काँप रहल हे अइसे-
जइसे बदरा विजुरी,
घरे दुसाला नइहर पोरा
इहाँ इज्जत ला हम ठिठुरी।
नींद निगोड़ी पास न आबे-
करे दूर से घात।
बीत रहल हे रात।
पीअर घोती लाल चुनर में-
गेह गात हे रंगल।
नेह-नात से हिरदा-हिरदा
हिरनी के संग भीगंल।
मदन फूल से विंध रहल हे-
का कहूँ मन सकुचात।