भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिम-झिम बरसे बूंद बदरवा / जयराम सिंह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:05, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMag...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रिम-झिम बरसे बूंद बदरवा
सूझे नञ कुछ धोर अंधरवा
घरवा कैसे जाऊँ ना।
(1)
हमरा चुपके छोड़ हिरन हो गेल,
सब हमर सहेलिया,
हमहीं पड़लियो फंदवा हाय राम,
कांधा निठुर बहेलिया
करियो अब हम कौन उपाय निंगोड़ी बुधियो गेल हेराय।
कि कैसे पिंड छुड़ाऊँ ना घरवा कैसे जाऊँ ना॥
(2)
गहिड़ा में गिर गेला पर,
अंचरा हो गेल हल मैला,
साफ सुथर करते आ पहुंचल,
नटखट नटवर छैला,
गलहक अंगुरी तब फिर बाँह,
सोवारथ जनम मिटल सब चाह,
ओहे सुख कैसे पाऊँ ना।
घरवा कैसे जाऊँ ना॥