कलाकार: 2 कविताएँ / रामदरश मिश्र
1.
छोटा हो या बड़ा
कच्चा हो या पक्का
झोंपड़ी हो या महल, घर तो घर होता है
आदमी का सबसे बड़ा शरणस्थल
बाहर के थपेड़ों से थका-हारा व्यक्ति
राहत की साँस लेता है घर में आकर
घर मकान में होता है
और मकान सबसे खू़बसूरत नमूना होता है कला का
मकान बनताहै
मिट्टी से, पानी से, ईंट से, सीमेंट से, लकड़ी से
बनाते हैं श्रम से, खुरदरे मोटे-मोटे हाथ
मुश्किलों से खेलते हुए
लेकिन वे कलाकार नहीं कहलाते
कलाकार कहलाते हैं वे
जोमकानों में सुरक्षित बैठकर
काग़ज़ पर विविध आकृतियाँ उकेरते हैं
जो पता नहीं किसी के काम आती हैं या नहीं!
-28.9.2013
2.
कई दिनों से उसके कमरे का किवाड़ आहत था
वह कमरे में बैठा कविता लिखता था
तो हवा के आघात से
किवाड़ बड़बड़ाने लगता था
काग़ज़ फड़फड़ाने लगता था
ध्यान टूट-टूट जाता था
रात को चिंता बनी रहती थी कि
कोई आवांछित जीव आ न जाए
सृजन के तैरते सपने टूट-टूट जाते थे
बढ़ई आया
बहुत आश्वस्त भाव से किवाड़ को देखा,
हालचाल पूछा, मुस्कराया
और देखते-देखते उसकी कुरूपता को सौंदर्य में बदल दिया
जैसे कृष्ण ने कुब्जा की कुरूपता सौंदर्य में बदली थी
फिर कमरा कमरा लगने लगा और घर-घर
अब वह निश्चिंत भाव से कविता लिखने लगा
जिसे पता नहीं कोई पढ़ेगा भी या नहीं!
-29.9.2013