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चेहरे / रामदरश मिश्र

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आपके संगमरमरी मकान का दरवाज़ा
पारदर्शी शीशे का है
उसमें से बाहर के चेहरे दिखाई पड़ते हैं
अपना चेहरा नहीं
आपकी धूमिल आँखों को लगता है कि
बाहर के चेहरे
कटी-फटी मैली लकीरों से भरे हुए हैं
आपके शानदार स्नानघर में
एक जादुई आईना लगा हुआ है
जो सच नहीं
वह दिखाता है जो आप देखना चाहते हैं

उसके घर का दरवाज़ा लकड़ी का है
जिसमें जालियाँ लगी हुई हैं
कमरे से बाहर से हवाएँ तो आती हैं
चेहरे नहीं दिखाई पड़ते
उसने अपने कमरे में
एक मामूली सा आईना लगा रखा है
उसके सामने जब खड़ा होता है
तब अपने को सही देख लेता है
और जब बाहर निकलता है
तब लगता है कि
बाहर के सारे चेहरे उसके चेहरे से सुंदर हैं।
-10.10.2014