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हँसी और दंश / रामदरश मिश्र

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उस कबाड़ी बच्चे के हाथ में
लोहे का एक टुकड़ा आ गया
उसे अपने छोटे साथी को देकर
खिलखिला खिलखिला कर हँस रहा था

वह धन-परस्त अपने दरवाजे़ पर उदास बैठा था
उसे पहले भी बहुत कुछ मिल चुका है
आज भी मिला था
किन्तु पड़ोसी को भी मिल गया
यह मलाल उसे डँस रहा था।
-23.9.2014