भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चमक / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जौहरी की बेटी की शादी में
कवि का किशोर पौत्र भी सम्मिलित था-
अपनी दादी केसाथ
वह भौचक सा देख रहा था
सेठानियों के अंग-अंग पर लदे आभूषण
अपने घर तो उसने
स्त्रियों को सादे वेश में ही देखा था
कुछ देर उसके भीतर ऊहापोह मचा रहा
फिर उसे न जाने क्यों सूझी
बोल उठा-
”दादीजी, इन सेठानियों के जेवरों की चमक
मेरे दादा जी की कविताओं की चमक के आगे
कुछ भी तो नहीं हैं“
दादी खुश हो आईं
बोलीं ‘जुग जुग जियो मेरे लाल
ऐसी ही उज्ज्वल भावनाओं के साथ“
और झुक कर माथा चूम लिया।
-12.4.2012