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चाबी / रामदरश मिश्र
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चाबियों का गुच्छा न जाने कहाँ रख दिया
बहुत खोजा पर नहीं मिला
अब रात होने को है
जी धक धक कर रहा है
कैसे खुलेंगे और बंद होंगे ताले
जो लटके हुए हैं सुरक्षा-कपाटों पर
अब तो पूरा घर
असुरक्षा का घनीभूत डर बन जायेगा
रात भयावनी बनकर
दस्तक देगी हमारी नींद पर, चैन पर
और हम चौंक चौंक कर जाग जायेंगे
आसपास की सामान्य आहटें भी
हमें चोरों की पगध्वनियाँ प्रतीत होंगी
सोचता हूँ
छोटी-छोटी चीज़ों की भी
कितनी बड़ी भूमिका होती है हमारे जीवन की प्रसन्न यात्रा में
अब देखिए न, लोहे के एक छोटे से टुकड़े में
पूरे घर की सुरक्षा समाई हुई है।
-11.2.2015