भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्थ / रामदरश मिश्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:02, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अर्थ केवल शब्द में ही नहीं होता
मन में भी होता है
दोनों मेरे अत्यंत प्रिय थे
एक को कहा-‘बावला’
उसे लगा कितना अपनापन है इस शब्द में
और उसमें खुशी महमहा उठी
दूसरे को भी कहा ‘बावला’
वह तिलमिला उठा
उसे लगा कि उसे सचमुच पागल कहा जा रहा है
जबकि वह बेहद सयाना है
वह मेरे विरुद्ध
न जाने क्या क्या कहने लगा
और उसका हर शब्द मेरी हँसी बनता गया।
-16.2.2015