Last modified on 12 अप्रैल 2018, at 16:05

नव मानव / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:05, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लम्बोदर व्हेल मछलियों ने लील लिया है
धरती का सारा हरित सुहाग!
शार्क मछलियों ने
हम जीवन-तट के सैलानियों को-
चपेटा मार कर,
कर दिया है पूरी तरह विकलांग!
अब सूरज अन्धा और काला हो गया है-
पर वह चुप है स्मगलर, रिश्वतखोर!

कीड़ों से खाये जाते, वासना-लोलुप, रक्त-टपकाते-
हड़के कुत्तों के
जबड़ों में पहुँच गया है रे-अब यह मेरा देश, यहाँ से वहाँ!
मेरी संस्कृति का स्वर्ण-कमल,
मेरी आलोकमयी ऋचाा,
मेरा स्वास्तिक-जड़ा कदलीदल-मण्डित मंगल कलश,
मेरे आर्ष स्वप्न
सब कुछ आज बन्दी पड़े हैं-
बेहया अँधेरे के घर!

शरीर के एक-एक स्नायु में, चेतना की एक-एक पर्त में
घोल दिया गया है-
कुम्भीपाक का सारा यंत्रणापूर्ण अँधेरा!
नितम्बपोषक कामदार कुर्सियों पर

जमे हैं मांस के लोथड़े!
बस अब तो जर्जर बूढ़ा सूरज टपकने ही वाला है,
नया सूरज जन्म लेने को है,
नयी लाली दीखने लगी है-
मानव-नियति के क्षितिज पर!

कुत्ते के कान-से हो गये हैं मुड़ कर-
पुरानी जर्जर मान्यताओं के खरखराते पत्ते!
झड़ने दो इन्हें-
फूटने दो नये रक्ताीा पल्लव!

पृथ्वी पर उतारो, रे-
अब नया मानव!