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फर्श और वाटिका / रामदरश मिश्र

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”तू कितनी गंदी है री-
मिट्टी से भरी हुई, कीचड़ से सनी हुई
और देख
तेरे इस पेड़ पर बैठ बैठ कर
चिड़ियाँ बीट किया करती हैं तेरे ऊपर“
पास की वाटिका से संगमरमरी फर्श ने कहा
वाटिका मुस्कराई, बोली
”तू स्वच्छ इसलिए है न कि
मेरी मिट्टी तेरे ऊपर का गंदा पानी सोखती रहती है
और उस पानी को अपना रक्त बना लेती है
तू तो जस की तस पड़ी रहती है री बांझ
किन्तु ऋतुएँ मेरा शृंगार करती हैं
जरा वसंत का इंतज़ार तो कर ले“

वसंत आया
वाटिका में तरह-तरह के रंगों वाले फूल खिलखिला उठे
उसमें आभा का एक बितान सा तन गया
फूलों से लदे पेड़ पर चिड़ियाँ गाने लगीं
भौंरे गुनगुनाने लगे
शीत से सहमा हुआ जीवन
उत्सव मनाने लगा
और संगमरमरी फर्श मृतप्राय सी पड़ी रही
उदास आँखों से वाटिका की ओर देखती हुई।
-13.3.2015