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प्यार करो! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'
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प्यार करो, प्यार करो!
अणुबम से जलता जग, शीतल उपचार करो!
प्यार करो!
कोमल व्यवहारों से,
भावों की मारो-
दुर्गम, दुर्जेय हृदय-गढ़ पर अधिकार करो!
प्यार करो!
जीवन है कुसुमोत्सव-
ले-दे भावांजलि नव-
भेंटें दो शीष झुका, सस्मित स्वीकार करो!
प्यार करो!
ले मन विश्वास-भरे,
गीत-हरे, प्यास-भरे,
लोचन ले आस-भरे, रूठो, मनुहार करो!
प्यार करो!
एक बने सब का मन,
ठुमक उठें युगल चरण,
जीवन त्रिताल बजे, रस का संचार करो!
प्यार करो!
लहर बनो वेग-भरी-
जिसमें हो किरण-परी!
हरियाली लाने को तट से तकरार करो!
प्यार करो!
युग-युग का संघर्षणा-
हो जावे मधु-गुंजन!
जीवन को दीपों का जगमग त्योहार करो!
प्यार करो!
अणुबम से जलता जग, शीतल उपचार करो!
प्यार करो!