इतिहास-ज्ञान / अछूतानन्दजी 'हरिहर'
आये थे अब आर्य हिन्द में, तिब्बत का स्थान, 
रहती यहाँ सदा से थी इक जाती सभ्य महान। 
जिनके थे सैकड़ों किले पाषाणों के मजबूत, 
उनको कहे असभ्य नीच जो वह है पूरा ऊत। 
शंवर कुयब कृष्ण विश्वक थे महावीर बलवान, 
कंपित होते आर्य नाम सुन, छिप जाते भय मान। 
सौ-सौ किले सुदृढ़ पत्थर के, दुर्जय सैन्य अपार, 
कौन जीत सकता था उनको, मन से जाते हार। 
हिरनकशिपु बलि और विरोचन महाप्रतापी वीर, 
वैदिक देव काँपते थर-थर, छूट गया था धीर। 
तब षड़यन्त्र रचा आर्यों ने सौ यज्ञों का स्वांग, 
राजा बलि को फांस दान में लिया त्रिलोकी मांग। 
फिर कब्जा कर लिया देश पर भेज उन्हें पाताल, 
जनता मारी गई मुफ्त में, हुआ देश पामाल। 
यों छल से ले लिया छीन उनका सारा धनधाम, 
दस्यु-दास शूद्रादिक कह जनता को किया गुलाम। 
नहीं गुलामी रुची जिन्हें वे गये वनों में भाज, 
कोल भील संताल गोंड वे बांके तीरन्दाज। 
आर्य-विजय की लीला तुमको 'हरिहर' गये सुनाय, 
देखो तो इतिहास पुराना ऋक्संहिता उठाय।
 
	
	

