भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्राचीन हिन्द वाले (ग़ज़ल) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:55, 13 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अछूतानन्दजी 'हरिहर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम भी कभी थे अफजल, प्राचीन हिन्द वाले।
अब हैं गुलाम निर्बल, प्राचीन हिन्द वाले॥
इतिहास हैं बताते, है शुद्ध खूँ हमारा।
पर अब हैं शूद्र सड़ियल, प्राचीन हिन्द वाले॥
बाहर से क़ौम आई, बसने को जो यहाँ पर।
सब ले लिया था छलबल, प्राचीन हिन्द वाले॥
वे ही हैं द्विजाती ये, पर खल्तमल्त हैं सब।
छाती के बने पीपल, प्राचीन हिन्द वाले॥
अकड़े जो, गयेपकड़े, जकड़े गये वह छल से।
फिर दास बने थल-थल, प्राचीन हिन्द वाले॥
तन-मन व धन निछावर, कर दोगे कौम पर गर।
 "हरिहर" बनोगे परिमल, प्राचीन हिन्द वाले॥

शेर-
तवारीखें बताती हैं हर इक कौमों की हालत को।
गिरी हैं या उठीं कैसे, ज़रा इतिहास पढ़ देखो॥