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आदमी का काम / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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आइनों को तोड़ना फिर खीझना
और अपनी व्यस्तता पर रीझना
आदमी का काम क्या इसके सिवा?
हाशिये के आखरों को बांचना
और करना व्यर्थ गीली याचना
स्वयं अपनी ही बनाई जेल में
छटपटाना, कसमसाकर नाचना
भौंह पर टेढ़ी लकीरें खींचना
तिलमिलाकर मुट्ठियों को भींचना
आदमी का काम क्या इसके सिवा?
फूल बना और कांटे पालना
छीजकर अपने हृदय को सालना
गंध-रस मधुमक्खियों को सौंपना
और खुद को फुसफुसा कर डालना
प्रश्न बुनना फिर पहेली बूझना
और अपने से निरंतर जूझना
आदमी का काम क्या इसके सिवा?
चांद-तारों के परे की सोचना
कल्पना कर, बाल सिर के नोंचना
पा विवश, अहसास अपने आप को
स्वयं की करना सदा आलोचना
दर्द की गहराइयों में डूबना
अनमने वातावरण से ऊबना
आदमी का काम क्या इसके सिवा?