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समझौता कर ले / योगेन्द्र दत्त शर्मा

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वे लोग कि जिनके मूल्य नहीं बिकते
अपने पैरों पर अधिक नहीं टिकते
मौसम से कोई समझौता कर ले!

मत आदर्शों का राग अलाप यहां
कुछ पाना है तो रह चुपचाप यहां
तू नैतिकता के चक्कर में मत पड़,
वर्ना झेलेगा पश्चाताप यहां

भूल जा, यहां की कैसी है सत्ता
रख याद यहां केवल वेतन, भत्ता
मौसम से कोई समझौता कर ले!

आदर्श, मूल्य-सब कुछ आडंबर है
टूटा-फूटा-सा केवल क्रम-भर है
सुविधाभोगी लोगों में शामिल हो
कौन-सा यहां तू ही पैगंबर है!

तू पाल न अपने मन में कोई भ्रम
बेकार रहेगा तेरा यह सब श्रम
मौसम से कोई समझौता कर ले!

जिसने केवल सुविधाओं को भोगा
उसका भी तो कोई विवेक होगा
युक्ति से नहीं जो काम लिया करता
निश्चित है उसका तो रहना पोंगा

लहरों का जिसको भान नहीं होता
वह समझदार इन्सान नहीं होता
मौसम से कोई समझौता कर ले!
-अगस्त, 1975