भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए भवन में नयी गृहस्थी / मानोशी

Kavita Kosh से
Manoshi Chatterjee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:17, 14 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह=उन्मेष }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नए भवन में
नई गृहस्थी,
डाल-डाल पर तितली तितली|

कली-हृदय कुछ अस्फुट सा है,
स्वप्न, नींद में अंकुर सा है,
लगता जग सुन्दर निष्पापी
हृदय बड़ा सागर जैसा है,

चंचल मन में
कितने सपने,
जीवन खट्टी मीठी इमली|

आँगन में चन्दा उतरेगा,
हँसकर मेरी गोद छुपेगा,
तारो की लोरी सुनकर मन
धीरे-धीरे झूम उठेगा,

नाचेगा जीवन
नन्हें हाथो की डोरी
बन कठपुतली|

खुशियों के ज्यों कलरव उठते
नीड़ चहकते सुबह सवेरे,
जीवन की आपाधापी फिर
कम हो जाती धीरे-धीरे,

रह जाता खाली आँगन, ज्यों
छुप जाती
बादल में बिजली|