यादों की महकती खुशबू / हेमा पाण्डेय
जिस भी उम्र में जो,
चीज दिल को छूती है।
यादो में शामिल हो जाती है,
कोई गहरी संवेदना बचपन मे
जब पहली बार हमें छूती है।
परिभाषित होती है लगता है
जैसे एक रूप में ढलकर,
एक आहट बनकर टहलकर
अपनी बात कह रही है।
जिंदगी का कोई पहलाहसास,
जो हमारी रूह तक उतर जाता है।
वही हमारी ज़िन्दगी हो जाता है।
अब भी ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर,
जिंदगी को जी लेना चाहती हुँ।
किसी नगमे का दामन थाम लेती हूँ।
आज भी मेरे अहसास के वहम
पूर्वाग्रह व नकारात्मक तंरगे,
मन के आसमान में छा जाते है।
रात का अंधियारा कर लेते है।
जीने की आस किसी कोने में,
बैठ कर सुबकने लगती है।
तब साहिर का ये गीत,
मेरे अंदर गूँजने लगता है...
इन काली सदियो के सर पे
जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे
तब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा
जब धरती नगमे गायेगी
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह हमी से आएगी॥