भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तट / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:05, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सागर के निर्जन
तट पर,
वर्ष हुए यों चलते-
चलते,
कल जाने कैसे
कौंधी सूरज की किरणें
या उछल फेन से
सीपी,
आई किरणों से मिलने
पर सच कहती हूँ
एक हथेली से जो
की हथेली बंद है
मोती है उसके अंदर
कहीं कदम्ब की
गंध है