भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हवा-2 / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:22, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पास आकर बोली हवा,
मुट्ठी में लो
साथ चलूँगी
श्वासों में ढल श्वास बनूँगी

तरु सिहरा,
शिराओं में जागा
भ्रम गति का

खोले बाहु, दिया बिसरा
वक्ष पर अम्बर टिका,
शाखा पर तिनकों का ऋण
स्पन्दन कोटर में
गाते खग का

उड़ा तरु जब चली हवा
अभी यहीं थी
यहीं कहीं थी
गई कहाँ वह
किधर,
हवा?