भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नेति / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:10, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जैसे बादल छँटने पर
उगता इंद्रधनुष आधा
फिर तन जाता ओर छोर
क्षितिज में पूरा
जैसे संध्या ढलने पे
उगता पहला तारा
फिर तारा तारा हो
हो जाता नभ सारा
जैसे हिम के नीचे से
ले छिद्र तनिक-सा, तृण
ले आता हिम से ऊपर
बागीचे का बागीचा
जैसे माँ बच्चे को
हौले से छूती फिर
झटके से उठा लगाती
अपनी वत्सल छाती
वैसे ही, बँधी मथानी वह नेति,
मथती अक्षर-अक्षर में बहते
संगीत सलिल को,
मथ-मथ
सुनती रहती