भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मूक करोति वाचालं / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितनी जिसकी कल्याणी वाणी
उतनी उतनी पाता वह भाषा

किन्तु पा लेने भर से
कभी नहीं कुछ होता-
हर पल अखुँआना होता है,
जल दे-दे अक्षर को,
तब कहीं पनपती वह-

सोते-जगते,
किसी पुनीत पल,
टप् से झर

कविता का फल होता है