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आना तुम वायु के जैसे / सुनीता जैन
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आना तुम वायु के जैसे
हर साँकल से हर द्वारे से
पात-पात पे नाम तुम्हारा
कंठ-कंठ में वाणी
हर दम आँसू सजल नयन में
गात हुआ सब पानी
क्या मेरा क्या अपना-पराया
लोक लाज मर्यादा
बिसर गए, सब बिसर गए
मूढ़मति भई राधा-
आना तुम वायु के जैसे
हर साँकल से हर द्वारे से