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अब के जब / सुनीता जैन
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अब के जब भाग्य-पत्रा
पढ़वाया
अप्रत्याशित उसमें
सुख-साधन
यह-वह
सभी था, पर तुम्हारा नाम
अपने नाम के साथ
अंत तक न देख
मेरा स्वयंवरा-हठीला मन
कैसे-कैसे
छटपटाया