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हो! हमरा बनल रही भौकाल / जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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बेर बेर हँसावेले, बेर-बेर रिगावेले
हमार नन्हकी॥
हमके घूमरी घुमावेले, हमार नन्हकी॥
खात के बेरा हाथ थरिया में मारे
तोतली बोलिया से बाबूजी पुकारे
भर घर के भर दिन, मन हरसावेले
हमार नन्हकी॥ हमके घूमरी...
बइठल देखे त, खूँट धई खींचेले
अचके कोंहाले, आँखि दूनों मीचेले
पीट पीट थपरी, सभके बोलावेले
हमार नन्हकी॥ हमके घूमरी...
अचके में रीझेले अचके में खीझेले
कबों कंचा खेले खाति हमरा भींचेले
कबों आगे कबों पीछे, सभे धउरावेले
हमार नन्हकी॥ हमके घूमरी...