भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मार्च / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 21 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोलहवें साल की तरह
प्रवेश करता है मार्च
मिट्टी के कौमार्य में

झरते हैं पत्ते
मिट्टी रजस्वला हुई

तरुणाई की उद्दाम उमंगें हैं फूल
सारी ऐंद्रिकता कितनी सुगंधित और निष्पाप

मिट्टी की छातियों का
गुलाबी उभार हैं :
पीले फूलों से भरे चमकते पेड़

परिव्राजक वसंत फिर लौटा है
मिट्टी अपनी मधुबनी देह
नैवेद्य की तरह उसे अर्पण करती है।