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ज्वार / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
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मैं एक समुद्र हूँ
तुम मेरा चंद्रमा
तुम्हारा मिलना
पूर्णिमा की उत्तेजना भरी रात्रि
मेरा दिल इतना बड़ा हो गया है
कि पूरे शरीर में फैल गया है
नाखूनों तक से “धड़ – धड़” की आवाज़ें आती हैं
कभी यह अनुभव नहीं था
कि मन में भी रक्त
आंधियों की तरह बहता होगा
कानों का लाल होना
समुद्र की सबसे ऊंची लहर है
मैं एक समुद्र हूँ
तुम मेरा चंद्रमा