भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौटना / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 21 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे लगता है
मैं बार–बार संकल्प की कल्पना में
जी रहा हूँ
संकल्प: लौटने का
जैसे लौटना पढ़ने की तरफ़
लौटना कविता की तरफ़
कभी-कभी सोचता हूँ
अब लौटूँगा संगीत की तरफ़
...अब अभिनय की तरफ़
कभी ये संकल्प कि अब लौटूँगा
कमाने की तरफ़
अब तो परिवार की तरफ़ निश्चित ही
अब लौटूँगा नहीं जी गई उम्र की तरफ़
कितना कठिन है फिर लौट पाना
जब सारे ठौर
जीवन के बीहड़ में
बिखरे हों बेतरतीब
मुझे लगता है
कि अब सिर्फ संकल्प की तरफ़
लौटता हूँ