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उस मौन की प्रतीक्षा में / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'

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मिट्टी का प्रेम
मिट्टी पर समाप्त हुआँ
एक रूह बची
जो जलती रही
उसकी अनन्त प्रतीक्षा में
वो मेघ गर्जना की भांति
हर बार आयी
फिर खामोश बरस कर विदा हो गयी
शायद यही रिवाज रहा होगा
उसके शहर का
जो सदियों से तिरस्कृत करता रहा
और एक मे
शताब्दियों से उस मौन की प्रतीक्षा में
स्वयं की मिट्टी बदलता रहा