Last modified on 24 अप्रैल 2018, at 14:08

समझ से काम ला / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखऽ हा
दिल्ली
अउ पटना,
रोज भोरे-भोर
आकाशवाणी पर
‘सीताराम सीताराम’ रटना
टी. भी. पर
रात में
राजीव के गायन,
अउ दिन में
महाभारत अउ रामायण
इहे हो
भीम के गदा
आउ अरजुन के बान,
इहे तो लेतो
कहियो तक तोहर जान
दुशासन जीतो
दुर्योधन जीतो,
जे दिन
द्रौपदी के
सड़िया फट भी जैतो
तब कोय नै सीतो
‘सीताराम सीताराम’
कहल हो जैतो,
अंत में
तोहरो

झोपड़ी से
महल हो जैतो
जब जपबा माला
तब पराया के
माल हड़प के
तहूं लगैहा
अपन तिजोरी में
अलीगढ़ के ताला
तब
नै सोन्हैतो
तोहर पेट
तहूं भर लेबा
बिना कमैले अप्पन पेट
सच कहऽ हियो
सालिग्राम ला
तहूं झूठ बोलो
लेकिन
समझ से काम ला
तोरा समझदारी हो,
लेकिन
तोहर भीतर के
जे भूत हो
उहे अनारी हो,
बर्तमान के बटुआ में रख के
भविष्य के
भंडा फोड़ो