भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजुका बेटा / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:35, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ई कोय जरूरी हो
कि तों कमैबा तब
बेटा बुड़ैतो नै?
तों धन जमा करबा
तब बेटा उड़ैतो नै?
बेटा के पालो
अउ ओकरा पढ़ लिखा ला
तब ओकरा उछालो
नै तो तोहर बेटा
कोठा पर चढ़तो,
सराब पी के
तोहर ठोंठा पर चढ़तो,
तों जे चाहऽ हा
तोहर भूल हो
पहिने तो
बुतरू के घरे में इसकूल हो
घरे में झोंटम झोंटी,
ऊ कइसे कमा के लैतो
तोरा ले रोटी
ऊ माय बाप के चिन्हतो
किशोर अउ हेमा,
ऊ घर में रहतो
कि देखतो सिनेमा
एखने के
बुतरू के पढ़ाय
बाप करै प्रणाम
बेटा करै बाय-बाय।