भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महान नागरिक बनो / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीताराम सीताराम।
खुसी घरवैया के,
काटल जाय खस्सी
डाँटल जाय केकरा
ईसा राम
बीसा राम,
जादे बोलो
तब मीसा राम
इहे अच्छा हो कि
जब सब खून-पछा हो
तहूं तनी नछोड़ो,
अउ एखने जे
राजनीति हो
ओकर बात छोड़ो
तो सब मिलके
देस के महान नागरिक बनो
ई देस
जेकरा भगत सिंह के
सहादत मिललो हे,
जेकर चन्द्रशेखर से
मर जाय के आदत मिलो हे
ऊ देश के बासी
किसान-मजदूर
केतना मजबूर
कि कहल नैजा हो,
तों सब सहो तऽ सहो
हमरा सहल नै जा हो
ई जे हम
कलम के भाग दौड़ में
निकल रहलियो हे,
नया सूरज लाबै ले
पुरनका के निगल रहलियो हे
यह देखो अंधरिया,
झोपड़ी के भीतर
घुसल है करिया
जे बिजली में काम करऽ हे
वह देखो इंजोरिया
लाल पीअर बौल में
सेठ जी आराम करऽ हे।