भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैसा / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊ जे पड़ोसी हो,
तोरा दुख देबै मैं
ऊहो कुछ दोसी हो।
अब हम्मर
पड़ोसी के कहानी सुनो,
पैसा के करदानी सुनो,
धन हे, धरती हे
तइयो अभागल हे,
जे घर में बुतरू से
बुढ़वा तक पागल हे
सुनला ने बांके?
ऊ अप्पन
एगो भाय के
भेज देलको काके
पैसा के हकन अउ होकरी,
ओकर एक भाय इंजीनियर
करऽ हे नोकरी
एक दिन
जा हलै पटना,
अव सुनो
रेलगाड़ी के घटना
बिना टिकट जतरा
देखते चकरा गेलै,
आर की कहियो
कहलकै हम इंजीनियर ही
तइयो पकड़ा गेलै
हम तो पी लेतिये हल जहर
जेखने पकड़ लेते हल कालर
सब धन जल गेलै,
दू गो सिपाही
ओकरा पकड़ने चल गेलै
इहे हे हाल
पैसा के कमाल
तीन सौ बीघा जमीन हलै
ओकरा
कौंची के कमी हलै
पैसा बाला के बोली हे
केतनै भरल झोली हे
महल दू महल हे
तइयो फुटपाथ
पर के तमोली हे
मुँह तो लाल हे,
लेकिन सुनऽ हे
कुछ नै
इहे तो कमाल हे
पैसा वाला के कान बहिर
आँख आन्हर हो जा हे
जइसे
नरियर के खेलौना
आदमी बानर हो जा हे
पैसा के कहर हे,
हर आदमी के दिल में
पैसा के लहर हे
पैसा
आदमी के फँसबै बाली झांटा हे
पैसा कील है, कांटा हे।