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गरीब के आह / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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के जानऽ है कि
केखने धरती डोल जा हे?
जब गरीब के
काया कँहरऽ है,
तब परकिरती
हल्ला बोल दे है
तब झोपड़ी रह जा है
ऊँचा ऊँचा महल ढ़ह जा है
देखो ने रूस,
महल सब ढ़ह गेलै
रह गेलै फूस
गरीब आहऽ हे
लेकिन दुस्मनो के घर नै ढ़ाहऽ हे
गरीब तो समझ गेलै हे
भाग आउ भगवान में बझ गेले हे।