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स्वतंत्रता सेनानी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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कहऽ हे लोग
ऊ हे स्वतंत्रता सेनानी
आजादी में
इनकर खून
हो गेलन हल पानी।
लोग में हे ई टेन्सन,
कि कैसे मिलऽ हे
ई पपिआहा के पेन्सन
आजादी में
जेकर जनम भी नै हलै,
ऊ हे सेनानी
हे भगवान!
सुनके हमरो खून
हो जा हे पानी
हाय रे सरमन
आदमी के चलै के ठेकाना नै
भूत के भारत भरमन!
तरवा तर के लहर
कभी चढ़ जा हे
हमर तो
मन के ब्लड प्रेसर बढ़ जा हे
हमर गाँव में
ऐसनो फायटर हे,
जेतना के आजादी हे
ओकरो से जादे उमर हे
घर के जोगी
हियाँ तर से काट रहल हे