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बिगुल फूँके पड़तो / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
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सुनो-जय प्रकाश
सम्पूर्ण क्रांति फैल होलै,
केतना सफेद हलै
बुझलूँ जब मैल होलै
तहूं सभे बूझो अब
क्रांति कैसे ऐतै,
भगवान कैसे ऊपर से
रोटी बरसैते?
ई ले अब अंतिम बात
एतनै बस कहना हो,
बिगुल फूंकै पड़तो
अगर शांति से रहना हो
बस खाली अपना में
गाँठ जोर लेना हो,
धरम करम
जात-पात
सब तोड़ देना हो
बिख बहुत पीला सब
कंठ तक घरघरी हो,
क्रांति तोहर माथा पर
कहिये से खड़ी हो
तोही नै तनऽ हा
कइसे उपचार होतो?
क्रांति होतो मिलके
जब सब के विचार होतो
क्रांति तोहर मन में हो
कहीं न हो खोजना,
बंद कोठरी में
बनाबो कोय योजना
कहीं कोय योजना
कहीं कोय तिकड़म के
चाल नै चलो,
ढ़हो ओकर कोठा
तोर टटघर नै जलो
दुस्मन के पता चलतो
घुस के पैठ कर देतो
घाव के छोड़तो ऊ
अउसे खंघर देतो।