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हम नहि आजु रहब अहि आँगन / विद्यापति

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हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई.
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ॥

पहिलुक बाजन डामरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल।
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पराय गे माइ।

धोती लोटा पतरा पोथी
सेहो सब लेबनि छिनाय।
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय घिसियाब, गे माइ।

भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दृढ करू अपन गेआन।
सुभ सुभ कय सिरी गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ॥