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प्रेम में रेत होना / आनंद गुप्ता
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रेत की देह पर
नदी की असंख्य प्रेम कहानियाँ है
नदी पत्थर को छूती है
पत्थर काँपता है
और बिना कुछ सोचे नदी को चूमता है
नदी उसका आलिंगन करती है
पत्थर उतरता है धीरे-धीरे
नदी के दिल में
गहरे और गहरे
नदी के साथ प्रेम क्रीड़ा करता हुआ
पत्थर बहता है नदी के साथ
पत्थर मदहोश हो
टकराता है पत्थरों से
टूटता है पिघलता है
और रेत बन जाता है
प्रेम में हर पत्थर
हर चट्टान को
अंततः रेत होना होता है
जिस पर बच्चे खेलते हैं
जिस पर एक प्रेमी लिखता है
अपनी प्रेमिका का नाम
जिससे घर बनते हैं।