भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहा सुना / जगदीश गुप्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:07, 5 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश गुप्त |अनुवादक= |संग्रह=नाव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जो कुछ भी मैंने कहा वही क्या था मन में?
जो कुछ था मन में ठीक वही क्या कह पाया?
मैंने भरसक कोशिश की लेकिन सही-सही —
शब्दों में भावों का प्रवाह कब बह पाया?
माना मेरी बातों से चोट लगी तुमको,
पर क्या यह मैंने चाहा था, इनसाफ़ करो।
फिर भी मेरे ही कारण तुमको दर्द हुआ,
जो कुछ भी मैंने कहा सुना, सब माफ़ करो।