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होल़ी / सुन्दर कटारिया

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वैसे तो होल़ी का त्यौहार सबतै प्यारा है
पर म्हारे गाम मै होल़ी खेल्लण का तरीका न्यारा है।
हमारी होल़ी शुरू तो रंग्गों के मेल से होती है
पर खतम काल़े तेल से होती है।
होल़ी की पिच्चकारी तभी छुटती है
जब भाभी देवर को कूटती है।
मै भी इन रंग्गों मैं खूब न्हाया हूं
बचपन से ही भाभियों तै कुटता आया हूं।
मनै कुछ अलग करण की सोची एक बार
मै बणग्या भाभी पहर कै सूट सिलवार।
सिर पै रख कै चुन्नी घूंघ्घट मार लिया
टांड पै धरया बाब्बू का सोट्टा तार लिया।
पहर कै चूड़ी सिंगार कर लिया
जो कूटणे थे उनका नाम लिस्ट मै त्यार कर लिया।
मनै देखते ही गाम के चकरागे
बुड्ढे, जवान, बाल़क सब ब्हार आगे।
सबके सबनै एक्कै चिन्ता खा रही थी
के इतनी तगड़ी बहू किसकै आरही थी।
सोच मै पड़ रह्या सारा पान्ना था
अक बहू के थी पूरा दान्ना था।
उस होल़ी पै खूब रंग बरसाया था
जिसकै एक लठ्ठ लागग्या वो उल्टा नही आया था।
दस बारा की तो ईसी देही तोड़ दी थी
के उनन्हैं होल़ी खेलणी ए छोड़ दी थी।
गाम मैं जो एक आध्धा मर्द था
उसकी गुद्दी मैं आज तक दर्द था।
कईयां नै भाजणा भी चाह्या पर भाज नही पाये
कुछ कै मारे लठ्ठ तो कुछ थप्पड़ां तै निपटाए ।
सबके सब कसूत घबरा रहे थे
पाणी मै तर थे फेर भी पस्सीने आरहे थे।
जिनन्है पी राक्खी थी उनका भी नसा तार दिया
मनै तो अपणा छोट्टा भाई भी सुधार दिया।
मूंह पै गिरीस ला रह्या था
बैरी मनै ए छेड़ना चाह रह्या था।
ईबकी होल़ी पै कती लठ्ठ गड़ग्या
मैं भाभी के बण्या पूरे गाम मै रूक्का पड़ग्या।
पर खेल्लणिया नै भी कती चाल़े कर दिये
मेरे सारे लत्ते काल़े कर दिये।
कुटते कुटते भी बैरी हद्द करगे
मनै गार अर गोब्बर तै भरगे।
मेरे सपन्यां पै पाणी फेर दिया
आख्खर मै ठाकै मै झोड़ मै गेर दिया।
ईब्बी मेरे सिर मै वा झोड़ की ग्हाद सै
अर वा होल़ी मनै आज भी याद सै।