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गीत अपने प्यार का मैं / अंकित काव्यांश

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गीत अपने प्यार का मैं गाउँ जिनमे झूमकर
वे सभी स्वर और व्यंजन वर्णमाला में नहीं।

भीग जाना जब कभी बरसात में तुम
मान लेना गीत का मुखड़ा गया बन।
बारिशें जैसे उतरती है जमीं तक
प्यार में वैसे उतरता बावला मन।

जो अलौकिक बात इस बरसात में मिल जाएगी
वो किसी भी चर्च मस्जिद या शिवाला में नहीं।

देखना नदिया किनारे बैठकर तुम
तोड़ती तट बन्ध कुछ लहरें मिलेंगी।
मान लेना गीत के ये अंतरे हैं
औ मचलती धार में बहरें मिलेंगी।

जो सिखाये प्यार का अध्याय नदिया की तरह
शिक्षिका ऐसी किसी भी पाठशाला में नही
[06/05, 7:15 pm] Vishal Samarpit: गीत सुन
उपलब्धियां जब भी बुलातीं हैं
मैं तुम्हे आभार देना याद रखता हूँ।

साथ मेरे
गुनगुनाता है सफ़र का शोर हर पल
मील का पत्थर किनारे पर चिढ़ाता फिर गुजरता।

पाँव अनियंत्रित
भटकते हैं अपरिचित पन्थ पर जब
तब अधूरा गीत अपनी पूर्णता को प्राप्त करता।

और मन की
बाँसुरी जब स्वर सजाती है
होंठ पर तुमसे हुए संवाद रखता हूँ।

काश हम दोनों
नदी होते तटों को ध्वस्त करते
प्यार की अदृश्य धारा ढूंढते सब तब मिलन में।

मांगते सब
मुक्ति आकर घाट पर मेरे तुम्हारे
और हम उन्मुक्त हो फिरते सदा जीवन गगन में।

जब पसंदीदा
शहर की बात आती है
सामने सबके इलाहाबाद रखता हूँ।