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जहाँ जरूरत गूँगे लोग / आर्य हरीश कोशलपुरी
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जहाँ जरूरत गूँगे लोग
नही जरूरत भूंके लोग
खुशी मनाते निर्भर डे की
उबे दिखे हैं चूके लोग
दवा कराके हैं मायूस
मरज़ पुराना सूखे लोग
अधर कहाँ से होंगे सुर्ख़
नदी किनारे भूखे लोग
किसी समय आ करके देख
तरुण समय है सूखे लोग