भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहा था / राहुल कुमार 'देवव्रत'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 12 मई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहा था ... याद है?
जमीं बड़ी कोमल

कि इसको ज़िल्द पहना चाहिए

वो क्षितिज ...
क्षिप्रा के पार
उसे जो चूमता-सा दिख रहा है शाम ढलते
कोई माशूक-सा लगता ...आवारा

कहो है सत्य कितना?

बराबरी की बात करते बाज़ुबां तुम
कसम से नाच उठते

... याद है?

न समझा ... नोंच लोगे लुंचे मांस
क्षितिज से भी निठुर तुम
नुचे गर्दन से बहते रक्त कत्थई
क्षिप्रा के ठंडे धार धोएंगे