भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द शोर / राहुल कुमार 'देवव्रत'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 12 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल कुमार 'देवव्रत' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तूने कहे थे सिर्फ़ सुनने को
ये तुम जानो
सुना न सिर्फ़ सौ टके जिया मैंने
ये कान...
बरसों तलक पीते रहे एक-एक वाक्य शब्दशः
बिना जांचे

कहो क्या झूठ है?

बरस बीते तो ये जाना
शब्दों की बारिश में नहाया
मैं तुम्हारा व्यक्ति नहीं
कोई अनियत संख्या था
प्रथम और अंतिम के बीच

विष है

तरंगें जम गई हैं तार जैसी
ये शब्द नहीं
उन तारों के बीच फंसे कांटे हैं
न सिर्फ़ चुभते
बारूद-सा विस्फोट करते है
ये पिघलते चूते हैं
जैसे कान में कोई सिक्का ढ़ाला जा रहा हो

शब्दों में बड़ी ताकत होती है
तुम न समझोगे