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तुमने वस्त्र भिगोए / नईम

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तुमने वस्त्र भिगोए, फींचे-
हमने धोए और खँगाले।

अलग-अलग बैठे सुख टूँगे,
सुंदर को देखा-भोगा जब
लगा कि जैसे हों दो गूँगे;

जब-जब डोल कुएँ में डाले,
चार-चार हाथों से खीेंचे।

सोच-समझ कर मंडप-माँझे,
लिए हाथ में हाथ किंतु वो
संस्कार थे या फिर साँझे।

बोये बीज परस्पर सींचे।
अपनी-अपनी पार संभाले।

वैसे तो प्राणी स्वभाव से,
एक-दूसरे के पूरक हम
एक-दूसरे को अभाव से।

अँधियारे हों या कि उजाले
ठोस जमीं पैरों के नीचे।

रिश्ते मुझे कटखने लगते,
प्रेम-घृणा के घाल-मेल ये-
दो दिन बाद खटकने लगते।

मेरे तीर तुम्हारे भाले,
चले परस्पर आँखें मींचे।