भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ हैं वे पाँव / नईम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 13 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहाँ हैं वे पाँव-
जिनकी धूल माथे से लगा लूँ।
आरती उठकर उतारूँ,
पुन्यभागा नर्मदा के
शुद्ध जल से
कठौता भरकर पखारूँ।
कहाँ हैं वे पाँव?
कहाँ है वे गाँव-
बरगद पिता
तुलसी: माँ समर्पित
मानवी देवात्माएँ,
कड़कड़ाती ठंड में भी प्रार्थित
जल ढारती, दृढ़ आस्थाएँ;
क्या बताएँ
कहाँ हैं वे पाँव
जिनसे जुड़े थे हम,
कहाँ खोजूँ-
कहाँ जाऊँ-
ठीक आगे छावनी
पीछे कहीं लश्कर पड़े हैं!
कै़द अपनी खोह में हम
चौतरफ जनतंत्र के प्रहरी खड़े हैं!