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प्यार के प्रतीक बंधु / नईम
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प्यार के प्रतीक बंधु!
कहाँ गए फूले कचनार?
पछुआ रस्ते चलती सुबहों से, शामों से
पुरवाई पूछ रही, बौराये आमों से;
आलते भरी एड़ीं
कहाँ गए फूले दिन चार।
महुए से सटा हुआ कटहल क्यों बतियाए,
सेमल के कहने पर नीम नहीं बतियाए;
चौक साँतिए मिलकर
आपस में छेड़े तकरार।
टेसूवन, झरते झर गए टिकोरे मन के,
खड़ा हुआ राहों में विंध्याचल तन के;
बेतुके खिंचावों से
उतरे अधबीच में सितार।
प्यार के प्रतीक बंधु!
कहाँ गए फूले कचनार?