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आज बहुत महँगा है मरना / नईम
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आज बहुत महँगा है मरना,
इसीलिए जीवन जीने को बाध्य हुआ हूँ।
साधन ही होता आया हूँ,
नहीं किसी के लिए आज तक साध्य हुआ हूँ!
कई बार सोचा मैं मर लूँ, यह गलीच वैतरणी तर लूँ,
मौत प्रिया-सी खड़ी सामने, उठकर मैं बाँहों में भर लूँ;
किंतु ज़हर के भाव देखकर
मैं कच्ची देशी पीने को बाध्य हुआ हूँ।
अगर आप देखें आँखों में, मेरे जैसे हैं लाखों में,
तथ्य यही है सच मानें तो तना-बँटा सौ सौ शाखों में;
फटी हुई किस्मत सीने को बाध्य हुआ हूँ।
सूदख़ोर से खड़े सबेरे, अमरबेल से अपने घेरे,
दिन में ही छा रही रतौंधी, आँखों में उग आए अँधेरे;
किसी बीज-सा भूखा, लेकिन
विवश समूचा अब औरों को खाद्य हुआ हूँ।
साधन ही होता आया हूँ,
नहीं किसी के लिए आज तक साध्य हुआ हूँ।