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वो ओढ़े बगुलों-सी उजली / नईम

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वो ओढ़े बगुलों सी उजली,
अपनी लेकिन मटमैली है।

मोटी-झोंटी, खरे खदे की कामचलाऊ है ये अपनी,
जीवित रहते चादर है ये, मर जाने पर होगी क़फनी।

अपनी तो खाली-खूली पर
उनकी भरी हुई थैली है।

पाँव ढके तो सिर खुल जाता, सिर ढाँका तो पाँव उधारे,
मक्का आया वहीं-वहीं को, जिन सिक्तों में पाँव पसारे।
अपनी सीधी-साधी, लेकिन
ठगिनी उनकी नखरैली है।

छूटी नहीं गृहस्थी अब तक, हो न सका जोगी सन्यासी,
ना जाने है ये तीरथव्रत, नहीं कर सका काबा-काशी।
हम जुलूस-से हो न सके तो
हमसे हो न सकी रैली है।